दिवाली 2025: 20 या 21 अक्टूबर? जानें शुभ मुहूर्त और ज़रूरी बातें!

दीपावली, जिसे दीवाली या दीपोत्सव भी कहा जाता है, हिंदू धर्म का सबसे महत्वपूर्ण और आनंदमयी त्योहार है। यह समृद्धि, खुशी और प्रकाश का प्रतीक है। दीपावली का उत्सव समुद्र मंथन के दौरान देवी लक्ष्मी के प्राकट्य और भगवान राम के अयोध्या लौटने की पौराणिक घटनाओं से जुड़ा है। चूंकि ये दोनों घटनाएं रात्रि में हुई थीं, इसलिए दीपावली मुख्य रूप से अमावस्या की रात्रि को मनाई जाती है।

दीपावली 2025: 20 या 21 अक्टूबर?

दीपावली की तारीख अमावस्या तिथि पर निर्भर करती है, जो चंद्र कैलेंडर के अनुसार तय होती है। 2025 में अमावस्या तिथि का समय इस प्रकार है:
अमावस्या तिथि प्रारंभ: सोमवार, 20 अक्टूबर 2025, दोपहर 02:56 बजे से।
अमावस्या तिथि समाप्त: मंगलवार, 21 अक्टूबर 2025, शाम 04:26 बजे तक।
चूंकि दीपावली अमावस्या की रात्रि को मनाई जाती है, इसलिए 20 और 21 अक्टूबर की मध्यरात्रि महत्वपूर्ण है। इस कारण भारत के अधिकतर हिस्सों में 20 अक्टूबर 2025 (सोमवार) को दीपावली मनाई जाएगी। हालांकि, कुछ क्षेत्रों में, जहां उदया तिथि (सूर्योदय के समय की तिथि) को प्राथमिकता दी जाती है, वहां 21 अक्टूबर 2025 (मंगलवार) को दीपावली मनाई जा सकती है।
अधिकांश भारत में 20 अक्टूबर 2025 को दीपावली का उत्सव होगा, क्योंकि अमावस्या रात्रि 20 तारीख को प्रभावी होगी। फिर भी, स्थानीय पंचांग और परंपराओं के आधार पर कुछ समुदाय 21 अक्टूबर को भी उत्सव मना सकते हैं।

लक्ष्मी-गणेश-कुबेर पूजा के शुभ मुहूर्त

दीपावली पर लक्ष्मी-गणेश और कुबेर पूजा का विशेष महत्व है। पूजा का समय विभिन्न उद्देश्यों के लिए अलग-अलग होता है। 2025 के लिए शुभ मुहूर्त इस प्रकार हैं:
व्यापारी, ऑफिस, और कारखानों में पूजा करने का समय: दोपहर 02:13 बजे से 03:44 बजे तक (20 अक्टूबर 2025)।
महत्व: यह समय व्यापारिक समृद्धि और नए वित्तीय वर्ष की शुरुआत के लिए आदर्श है। व्यापारी इस दौरान अपने बही-खाते और दुकानों में पूजा करते हैं।

घर और गृहस्थी के लिए (प्रदोष काल):समय: शाम 06:51 बजे से 08:48 बजे तक (20 अक्टूबर 2025)।

महत्व: यह समय घर में समृद्धि और सुख-शांति के लिए लक्ष्मी-गणेश पूजा के लिए सबसे शुभ माना जाता है। परिवार दीप जलाकर और मिठाइयां बांटकर उत्सव मनाते हैं।
तांत्रिक पूजा और मंत्र सिद्धि के लिए (निशीथ काल):समय: रात 01:19 बजे से 03:33 बजे तक (21 अक्टूबर 2025 की मध्यरात्रि)।
महत्व: यह समय तांत्रिक साधनाओं और विशेष मंत्र जाप के लिए उपयुक्त है, जो आध्यात्मिक साधकों के लिए महत्वपूर्ण है।
सुझाव: पूजा से पहले पंचांग की स्थानीय जानकारी जांच लें, क्योंकि मुहूर्त शहरों के आधार पर थोड़ा भिन्न हो सकता है।दीपावली का पौराणिक और सांस्कृतिक महत्वदीपावली का उत्सव कई पौराणिक कथाओं और परंपराओं से जुड़ा है:
देवी लक्ष्मी का प्राकट्य: समुद्र मंथन के दौरान अमावस्या की रात को माता लक्ष्मी प्रकट हुई थीं, जिन्हें धन और समृद्धि की देवी माना जाता है।
राम का अयोध्या लौटना: भगवान राम 14 वर्ष के वनवास के बाद रावण पर विजय प्राप्त कर अमावस्या की रात को अयोध्या लौटे थे। इस खुशी में लोगों ने दीप जलाए, जिससे दीपावली का नाम पड़ा।
अन्य कथाएं: कुछ समुदायों में यह पांडवों की वनवास से वापसी, भगवान कृष्ण द्वारा नरकासुर वध, और महावीर जैन के निर्वाण से भी जुड़ा है।

दीपावली को प्रकाश का उत्सव कहा जाता है, जो बुराई पर अच्छाई और अंधेरे पर प्रकाश की जीत का प्रतीक है। लोग अपने घरों को दीपों, रंगोलियों, और फूलों से सजाते हैं, मिठाइयां बांटते हैं, और आतिशबाजी करते हैं।
दीपावली मनाने के क्या है तरीके
घर की सफाई: दीपावली से पहले घर को साफ करें, क्योंकि माता लक्ष्मी स्वच्छ और सकारात्मक जगहों पर वास करती हैं।
दीप जलाएं: घर के प्रवेश द्वार, आंगन, और मंदिर में मिट्टी के दीपक जलाएं।
लक्ष्मी-गणेश पूजा: प्रदोष काल में पूजा करें। गणेश जी को बुद्धि और विघ्नहर्ता के रूप में, लक्ष्मी जी को समृद्धि के लिए, और कुबेर जी को धन संरक्षण के लिए पूजा जाता है।
उपहार और मिठाइयां: परिवार और दोस्तों के साथ मिठाइयां, उपहार, और शुभकामनाएं साझा करें।

पर्यावरण का ध्यान: आतिशबाजी कम करें और पर्यावरण-अनुकूल दीपावली मनाएं।

पर्यावरण-अनुकूल दीपावली: कुछ सुझावमिट्टी के दीपक और प्राकृतिक रंगों से रंगोली बनाएं। आतिशबाजी से बचें, क्योंकि यह वायु और ध्वनि प्रदूषण का कारण बनती है। स्थानीय और हस्तनिर्मित उत्पाद खरीदें, जैसे मिट्टी के बर्तन या हस्तशिल्प। जैविक कचरे को खाद में बदलें और प्लास्टिक का उपयोग कम करें।

दीपावली 2025 का उत्सवदीपावली 2025 भारत में मुख्य रूप से 20 अक्टूबर 2025 (सोमवार) को मनाई जाएगी, क्योंकि अमावस्या की रात्रि इस दिन प्रभावी होगी। कुछ क्षेत्रों में उदया तिथि के आधार पर 21 अक्टूबर को भी उत्सव हो सकता है। लक्ष्मी-गणेश-कुबेर पूजा के लिए प्रदोष काल (शाम 06:51 से 08:48 बजे) सबसे शुभ है।

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