हर वर्ग को साधने की रणनीति, जातीय संतुलन पर बड़ा फोकस
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की तैयारियाँ पूरे ज़ोर-शोर से चल रही हैं और एक बार फिर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अपना सबसे प्रभावशाली और आज़माया हुआ दांव चला है — सोशल इंजीनियरिंग का कार्ड।
समाज के हर वर्ग को जोड़ने की उनकी रणनीति न केवल चुनावी मैदान में कारगर रही है, बल्कि उन्हें ‘सोशल इंजीनियर’ की उपाधि भी दिला चुकी है।
जेडीयू ने जारी की 101 उम्मीदवारों की पहली सूची
जनता दल (यूनाइटेड) ने हाल ही में अपनी पहली उम्मीदवार सूची जारी की है, जिसमें 101 नाम शामिल हैं। इस सूची में नीतीश कुमार की रणनीति साफ झलकती है — हर जाति, वर्ग और लिंग को प्रतिनिधित्व देने की कोशिश।
इस सूची के अनुसार:
पिछड़ा वर्ग (OBC): 37 उम्मीदवार
अति पिछड़ा वर्ग (EBC): 22 उम्मीदवार
सवर्ण समाज: 22 उम्मीदवार
अनुसूचित जाति (SC): 15 उम्मीदवार
अनुसूचित जनजाति (ST): 2 उम्मीदवार
महिलाएं: 13 उम्मीदवार
इस टिकट बंटवारे के जरिए जेडीयू ने समावेशी राजनीति और सामाजिक न्याय का सीधा संदेश दिया है। इससे साफ है कि पार्टी हर सामाजिक वर्ग को साथ लेकर चलने की कोशिश कर रही है।
लव-कुश समीकरण से लेकर पिछड़ा वर्ग तक पर फोकस
पहली सूची में खास तौर पर ‘लव-कुश समीकरण’ — यानी कुशवाहा और यादव समुदाय — को प्राथमिकता दी गई है, जबकि दूसरी सूची में पिछड़ा वर्ग पर ज़ोर दिया गया है।
नीतीश कुमार का यह कदम यह दिखाता है कि वे केवल एक जाति पर नहीं, बल्कि हर वर्ग को जोड़ने की नीति पर काम कर रहे हैं, जिससे जेडीयू का सामाजिक आधार और व्यापक हो।
महागठबंधन और विपक्ष को साधने की रणनीति
राजनीतिक जानकारों का मानना है कि नीतीश कुमार की यह सोशल इंजीनियरिंग की रणनीति न केवल महागठबंधन के भीतर संतुलन बनाए रखने की कोशिश है, बल्कि उन वर्गों को भी फिर से जोड़ने का प्रयास है, जो पिछले कुछ चुनावों में बीजेपी या आरजेडी की ओर झुक गए थे।
इस संतुलन से जेडीयू को अलग-अलग समुदायों का समर्थन हासिल करने में मदद मिल सकती है, खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में, जहां जातीय समीकरण बेहद प्रभावी भूमिका निभाते हैं।
क्या इस बार फिर काम आएगा नीतीश का दांव?
नीतीश कुमार का यह सोशल इंजीनियरिंग मॉडल पहले भी कई बार सफल हो चुका है। टिकट बंटवारे में जातीय और लैंगिक संतुलन के जरिए वे एक बार फिर अपने मजबूत सामाजिक गठबंधन को तैयार करने में जुटे हैं।
अब बड़ा सवाल यह है कि क्या 2025 के चुनाव में नीतीश कुमार की यह रणनीति फिर से जेडीयू को सत्ता में पहुंचा पाएगी?
अंततः, चुनावी नतीजे जो भी हों, यह तय है कि नीतीश कुमार ने एक बार फिर बिहार की राजनीति में जातीय संतुलन और समावेशी सोच को केंद्र में रखकर अपना खेल शुरू कर दिया है।