परिचय: दिवाली के तीन रंग — छोटी, बड़ी और बूढ़ी दिवाली

दिवाली, भारत का सबसे लोकप्रिय और भव्य त्योहार, पूरे देश में हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। यह दीपों, रंगोली, मिठाइयों और आतिशबाजी का त्योहार है, जो अंधकार पर प्रकाश की जीत का प्रतीक माना जाता है। आमतौर पर दिवाली को दो प्रमुख रूपों में देखा जाता है — छोटी दिवाली (विभिन्न क्षेत्रों में अलग-अलग समय पर) और बड़ी दिवाली (कार्तिक महीने की अमावस्या को)।

लेकिन क्या आप जानते हैं कि हिमाचल प्रदेश में दिवाली के त्योहार का एक तीसरा रूप भी मनाया जाता है, जिसे ‘बूढ़ी दिवाली’ कहा जाता है? यह पर्व पारंपरिक और लोककथाओं से जुड़ा हुआ है, जो दिवाली के लगभग एक माह बाद हिमालय की घाटियों में धूमधाम से मनाया जाता है।

बूढ़ी दिवाली: देरी से आई खुशियों का प्रतीक

हिमाचल प्रदेश के सिरमौर, कुल्लू, शिमला, और लाहौल-स्पीति जिलों में मनाई जाने वाली ‘बूढ़ी दिवाली’ की एक खास लोककथा है। कहा जाता है कि जब भगवान राम अयोध्या लौटे और दिवाली का त्यौहार मनाया गया, तो यह खुशखबरी हिमालय की ऊंची पहाड़ियों तक पहुंचने में करीब एक महीना लग गया। इसलिए, हिमाचल के लोगों ने दिवाली की खुशियों को देर से मनाया।

उन दिनों की याद में, लोग मशालें जलाकर, नाच-गाकर, गीत गाकर और मिठाइयां बांटकर ‘बूढ़ी दिवाली’ मनाते हैं। यह पर्व मार्गशीर्ष महीने की अमावस्या को पड़ता है, जो पारंपरिक दिवाली के लगभग एक माह बाद होती है।

लोक परंपरा और उत्सव की झलक

‘बूढ़ी दिवाली’ के दिन हिमाचल की घाटियां मशालों और दीपों से जगमगाती हैं। पर्व के दौरान लोग अपने घरों, मंदिरों और गलियों को दीपों से सजाते हैं। इसके अलावा, पारंपरिक नृत्य, भजन, और लोकगीतों का आयोजन भी होता है, जो इस पर्व की सांस्कृतिक महत्ता को दर्शाता है।

यह त्योहार स्थानीय लोगों के लिए न केवल धार्मिक महत्व रखता है, बल्कि यह सामाजिक मेलजोल और एकता का भी माध्यम है। बूढ़ी दिवाली पर लोग अपने पुराने गिले-शिकवे भूलकर एक-दूसरे से मिठाइयां बांटते हैं और नए रिश्तों को मजबूत करते हैं।

हिमाचल में दिवाली का अलग महत्व

हिमाचल प्रदेश जैसे पहाड़ी प्रदेशों में प्राकृतिक वातावरण और सांस्कृतिक विविधता के कारण पर्वों का रंग भी अनोखा होता है। यहाँ दिवाली सिर्फ एक धार्मिक उत्सव नहीं, बल्कि प्रकृति और जीवन के प्रति आभार व्यक्त करने का भी अवसर होता है। बूढ़ी दिवाली इस बात का प्रमाण है कि कैसे विभिन्न क्षेत्रों में त्योहारों को स्थानीय संस्कृति और परंपराओं के अनुसार अपनाया और मनाया जाता है।

समापन: बूढ़ी दिवाली का संदेश

‘बूढ़ी दिवाली’ हमें यह सिखाती है कि खुशियों में देरी हो सकती है, लेकिन वे जरूर आती हैं और जब आती हैं, तो वे और भी अधिक आनंद देती हैं। यह पर्व धैर्य, समर्पण और आशा का प्रतीक है। हिमाचल की घाटियों में मशालें जलती हैं, तो न केवल अंधकार को मिटाया जाता है, बल्कि समाज के बीच भाईचारे और प्रेम की रोशनी भी फैलाई जाती है।

इस दिवाली, चाहे छोटी हो, बड़ी हो या बूढ़ी, सबसे महत्वपूर्ण है खुशियों का साझा होना और जीवन में प्रकाश फैलाना। हिमाचल की यह ‘बूढ़ी दिवाली’ हमें याद दिलाती है कि उत्सवों की खुशियाँ जितनी बड़ी हों, उतना ही गहरा उनका असर भी होता है।

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