इक्कीसवीं सदी ने मानव जीवन को तकनीकी प्रगति के नए आयाम दिए हैं, लेकिन इसके साथ ही यह कई गंभीर चुनौतियाँ भी लेकर आई है। इनमें प्लास्टिक और इलेक्ट्रॉनिक कचरे (ई-कचरे) की समस्या सबसे अधिक चिंताजनक है। इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों और प्लास्टिक ने हमारे जीवन को सुविधाजनक और आरामदायक बनाया है, लेकिन इनका अनियंत्रित उपयोग और कुप्रबंधन पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य के लिए एक बड़े खतरे के रूप में उभर रहा है। खासकर ई-कचरा, जो बिजली से संचालित उपकरणों जैसे मोबाइल फोन, टेलीविजन, कंप्यूटर, फ्रिज, वाशिंग मशीन, बैटरी, और प्रिंटर से होता है, जोकि ये अब एक वैश्विक संकट बन गया है। लखनऊ हाई कोर्ट के अधिवक्ता अखण्ड कुमार पांडेय ने इसी मुद्दे पर प्रभावों और समाधानों पर विस्तार से चर्चा की है।
प्लास्टिक और ई-कचरे का बढ़ता बोझ
पिछली सदी में प्लास्टिक और ई-कचरे की समस्या उतनी गंभीर नहीं थी, लेकिन आज यह पर्यावरण के लिए एक बड़ा खतरा बन चुकी है। भारत में शहरीकरण और उपभोक्तावादी संस्कृति के बढ़ने के साथ प्लास्टिक की खपत कई गुना बढ़ गई है। पहले जहाँ प्रति व्यक्ति प्लास्टिक की खपत नगण्य थी, वहीं अब यह कई गुना बढ़ चुकी है। अनुमान है कि आने वाले दशकों में यह और तेजी से बढ़ेगी, जिसका कारण तेजी से बढ़ता शहरीकरण और जीवनशैली में बदलाव है।
प्लास्टिक कचरे का एक बड़ा हिस्सा कुप्रबंधन के कारण कूड़े के ढेर में तब्दील हो जाता है। यह कचरा शहरों के नालों से होता हुआ नदियों और समुद्रों तक पहुँचता है, जिससे जलीय जीवन और पर्यावरण को गंभीर नुकसान होता है। इसके साथ ही, ई-कचरे की समस्या और भी जटिल है। भारत के प्रमुख शहर, जैसे मुंबई, दिल्ली, बेंगलुरु, कोलकाता, चेन्नई, अहमदाबाद, हैदराबाद, पुणे, सूरत, और नागपुर, देश के अधिकांश ई-कचरे का उत्पादन करते हैं। इसके अलावा, भारत में विदेशों से आयातित ई-कचरा भी इस समस्या को और बढ़ा रहा है।
ई-कचरे का पर्यावरण और स्वास्थ्य पर प्रभाव
ई-कचरे में कई जहरीले पदार्थ, जैसे सीसा, पारा, आर्सेनिक, कैडमियम, लिथियम, और कोबाल्ट, मौजूद होते हैं। इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस बनाने में तांबा, सोना, चाँदी, निकल, एल्युमिनियम, टंगस्टन और प्लेटिनम जैसी सीमित धातुओं का प्रयोग होता है, जिससे जलीय जीवों और जल पर्यावरण पर बुरा असर पड़ता है। इन धातुओं का खनन पर्यावरण को नुकसान पहुँचाता है, और इनके अनुचित निपटान से मिट्टी और पानी जहरीला हो जाता है।
ई-कचरे का पुनर्चक्रण एक जटिल प्रक्रिया है। जहरीले तत्वों को अलग करने के लिए अम्लीय सफाई की आवश्यकता होती है, जिससे निकलने वाला कचरा पर्यावरण को और अधिक प्रदूषित करता है। यह जहरीला कचरा नदियों और समुद्रों में पहुँचकर जलीय पारिस्थितिकी तंत्र को नष्ट करता है। इसके अलावा, अनौपचारिक क्षेत्रों में ई-कचरे का प्रबंधन करने वाले श्रमिकों को जहरीले रसायनों के संपर्क में आने से स्वास्थ्य समस्याएँ, जैसे कैंसर, श्वसन रोग, और त्वचा संबंधी रोग, होने का खतरा रहता है।
पुनर्चक्रण और प्रबंधन की कमी
भारत में प्लास्टिक और ई-कचरे के निपटान और पुनर्चक्रण के लिए बुनियादी ढाँचे की कमी एक बड़ी चुनौती है। सरकार ने एकल-उपयोग प्लास्टिक पर प्रतिबंध और पुनर्चक्रण के लक्ष्य निर्धारित किए हैं, लेकिन इनका कार्यान्वयन प्रभावी नहीं हो पाया है। ई-कचरे के पुनर्चक्रण के लिए विशेष तकनीक और संसाधनों की आवश्यकता होती है, जो भारत में अभी सीमित हैं। अनौपचारिक क्षेत्रों में कचरे का प्रबंधन जोखिम भरा होता है, जिससे पर्यावरण और श्रमिकों दोनों को नुकसान पहुँचता है।
इसके अलावा, विदेशों से आयातित ई-कचरे का प्रबंधन एक और जटिल समस्या है। भले ही भारत में औपचारिक रूप से ई-कचरे का आयात प्रतिबंधित है, फिर भी कई देशों से कचरा यहाँ आता है। यह आयातित कचरा न केवल प्रबंधन की चुनौती बढ़ाता है, बल्कि पर्यावरण को भी और अधिक नुकसान पहुँचाता है।
उपभोक्तावादी संस्कृति और स्मार्टफोन की भूमिका
आज की उपभोक्तावादी संस्कृति ने ई-कचरे की समस्या को और गंभीर किया है। स्मार्टफोन, स्मार्ट टीवी, और अन्य इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों की माँग में तेजी आई है। लोग नई तकनीक और मॉडल्स की चाहत में पुराने उपकरणों को जल्दी-जल्दी बदल रहे हैं। यह बदलाव आवश्यकता से अधिक शौक और सामाजिक दबाव का परिणाम है। स्मार्टफोन बनाने में कई गैर-नवीकरणीय धातुओं का उपयोग होता है, और इनका अनुचित निपटान पर्यावरण को नुकसान पहुँचाता है।
स्मार्टफोन आज हर व्यक्ति की जिंदगी का अभिन्न हिस्सा बन चुके हैं। लेकिन इनके लगातार अपग्रेड और बदलाव ने मोबाइल कचरे के ढेर को तेजी से बढ़ाया है। एक दशक पहले मोबाइल फोन से उत्पन्न कचरा नगण्य था, लेकिन आज यह ई-कचरे का सबसे बड़ा हिस्सा बन रहा है। इस प्रवृत्ति को नियंत्रित करना न केवल पर्यावरण के लिए, बल्कि संसाधनों के संरक्षण के लिए भी जरूरी है।
सामाजिक और कानूनी जिम्मेदारी
ई-कचरे के संकट से निपटने के लिए सरकार, उद्योग, और समाज को मिलकर काम करना होगा। भारत में ई-कचरा प्रबंधन नियम मौजूद हैं, लेकिन इनका सख्ती से पालन नहीं हो रहा है। एकल-उपयोग प्लास्टिक पर प्रतिबंध और जुर्माने की व्यवस्था लागू की गई है, लेकिन कई राज्य सरकारें इस समस्या को गंभीरता से नहीं ले रही हैं। इसके अलावा, उपभोक्ताओं को भी अपनी जिम्मेदारी समझनी होगी। पुराने उपकरणों को बिना सोचे-समझे फेंकने के बजाय, उन्हें पुनर्चक्रण केंद्रों तक पहुँचाना चाहिए।
समाधान की दिशा में कदम
ई-कचरे और प्लास्टिक प्रदूषण के संकट से निपटने के लिए तत्काल और ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है। कुछ व्यावहारिक समाधान इस प्रकार हैं:
आधुनिक पुनर्चक्रण सुविधाएँ: सरकार को ई-कचरे के लिए सुरक्षित और पर्यावरण-अनुकूल पुनर्चक्रण इकाइयाँ स्थापित करनी चाहिए। इन इकाइयों में जहरीले पदार्थों को अलग करने की उन्नत तकनीक होनी चाहिए।
जागरूकता अभियान: स्कूलों, कॉलेजों, और सामुदायिक केंद्रों में ई-कचरे और प्लास्टिक के खतरों के बारे में जागरूकता फैलानी चाहिए। उपभोक्ताओं को पुराने उपकरणों के उचित निपटान के लिए प्रोत्साहित करना होगा।
उत्पाद डिज़ाइन में बदलाव: इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों को डिज़ाइन करते समय ऐसी सामग्री का उपयोग करना चाहिए, जो पुनर्चक्रण के लिए आसान हो। साथ ही, उपकरणों की आयु बढ़ाने पर ध्यान देना चाहिए।
कानूनी सख्ती: एकल-उपयोग प्लास्टिक और अनौपचारिक ई-कचरा आयात पर सख्त प्रतिबंध लागू करने की आवश्यकता है। नियमों का उल्लंघन करने वालों के लिए कठोर दंड होना चाहिए।
उपभोक्ता जिम्मेदारी: लोगों को उपभोक्तावादी संस्कृति से बचना चाहिए और पुराने उपकरणों को बदलने की जल्दबाजी से बचना चाहिए। पुनः उपयोग और मरम्मत को प्राथमिकता देनी चाहिए।
स्थानीय स्तर पर पहल: नगर निगमों और स्थानीय प्रशासन को कचरा संग्रहण और पुनर्चक्रण के लिए प्रभावी योजनाएँ लागू करनी चाहिए।
वैश्विक परिप्रेक्ष्य और भारत की भूमिका
वैश्विक स्तर पर भी ई-कचरा एक बड़ी समस्या है। भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा ई-कचरा उत्पादक देश है। यह न केवल भारत, बल्कि पूरी दुनिया के लिए एक चेतावनी है। विकसित देशों से आयातित कचरा भारत जैसे विकासशील देशों में प्रबंधन की चुनौती को और बढ़ाता है। संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार, ई-कचरे का उत्पादन वैश्विक स्तर पर तेजी से बढ़ रहा है, और इसका अधिकांश हिस्सा अनुचित तरीके से निपटाया जा रहा है। भारत को इस क्षेत्र में एक जिम्मेदार भूमिका निभानी होगी और वैश्विक समुदाय के साथ मिलकर सतत समाधान विकसित करने होंगे।
एक सतत भविष्य की ओर
प्लास्टिक और ई-कचरे का बढ़ता ढेर हमें यह चेतावनी दे रहा है कि तकनीकी प्रगति और सुविधाओं की चमक-दमक के पीछे पर्यावरण पर पड़ने वाला बोझ अनदेखा नहीं किया जा सकता। यदि हम अब नहीं चेते, तो यह संकट न केवल पर्यावरण, बल्कि मानव स्वास्थ्य और भविष्य की पीढ़ियों के लिए भी गंभीर खतरा बन जाएगा। सरकार, उद्योग, और समाज को मिलकर एक सतत और पर्यावरण-अनुकूल दृष्टिकोण अपनाना होगा। यह समय है कि हम अपनी जिम्मेदारी को समझें और पर्यावरण को बचाने के लिए ठोस कदम उठाएँ। केवल सामूहिक प्रयासों और जागरूकता से ही हम इस संकट को नियंत्रित कर एक स्वच्छ और सुरक्षित भविष्य सुनिश्चित कर सकते हैं।
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