भारत की सड़कों पर आवारा कुत्ते एक परिचित दृश्य हैं, कभी साथी, तो कभी डर का कारण। बढ़ती काटने की घटनाएं और रेबीज जैसी रोकथाम योग्य बीमारी, जो हर साल हजारों भारतीयों की जान लेती है, ने इस मुद्दे को जटिल बना दिया है। बहस अक्सर दो चरम बिंदुओं सामूहिक हत्या या अंधी सहानुभूति पर अटक जाती है। दोनों ही दृष्टिकोण असफल साबित हुए हैं। कर्नल पी.एस. बिंद्रा, एक पर्यावरणविद् और समाज सुधारक, इस समस्या का एक मानवीय और व्यावहारिक समाधान प्रस्तुत करते हैं। TarangVoice.com के माध्यम से हम इस समाधान को आपके सामने ला रहे हैं, जो डर को दोस्ती में बदलने का वादा करता है।
समस्या की जड़: उपेक्षा और आधे-अधूरे प्रयास
भारत में अनुमानित 6 करोड़ आवारा कुत्ते हैं, और विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, वैश्विक रेबीज मौतों का 36% भारत में होता है, जिनमें ज्यादातर बच्चे शिकार होते हैं। Animal Birth Control (ABC) Rules, 2023 के तहत बाँझीकरण और टीकाकरण के कार्यक्रम तो घोषित होते हैं, लेकिन धनराशि की कमी और कागजी खानापूर्ति के कारण ये प्रभावी नहीं हो पाते। परिणामस्वरूप, कुत्तों की संख्या बढ़ती है, काटने की घटनाएं होती हैं, और रेबीज का खतरा बना रहता है।
आश्रयगृह: एक अव्यवहारिक समाधान
सुप्रीम कोर्ट के हालिया आदेश के तहत दिल्ली-एनसीआर में कुत्तों को शेल्टर में रखने की योजना है, लेकिन कर्नल बिंद्रा इसे अव्यवहारिक मानते हैं। जन्म फाउंडेशन की स्मिता जोशी ने बताया कि 75-80 कुत्तों के शेल्टर के लिए प्रति माह ₹5 लाख और 2 एकड़ जमीन चाहिए। दिल्ली के 3 लाख कुत्तों के लिए ₹150 करोड़ मासिक, 10,000 एकड़ जमीन, और 44,000 कर्मचारियों की जरूरत होगी जो असंभव है।
आश्रयगृहों की समस्याएं:
खराब स्थिति: ज्यादातर शेल्टर गंदे, भीड़भाड़ वाले, और संसाधनहीन हैं, जो कुत्तों के लिए जेल जैसे हैं।
आक्रामकता: कैद में कुत्ते तनावग्रस्त और बीमार हो जाते हैं, जिससे हमले बढ़ सकते हैं।
प्राकृतिक भूमिका का नुकसान: कुत्ते चूहों, बंदरों, और सड़े-गले कचरे को नियंत्रित करते हैं। इन्हें हटाने से वैक्यूम इफेक्ट होगा, जिससे अन्य हानिकारक जीव बढ़ेंगे।
आर्थिक बोझ: शरण स्थलों का खर्च सरकार व करदाताओं पर अतिरिक्त आर्थिक दबाव डालेगा।
पड़ोस मॉडल: मानवीय और टिकाऊ समाधान
कर्नल बिंद्रा एक समुदाय-आधारित मॉडल प्रस्तावित करते हैं, जो डर को दोस्ती में बदल सकता है:
1. क्षेत्रवार जिम्मेदारी: हर मोहल्ला, कॉलोनी या सेक्टर अपने इलाके के कुत्तों की देखभाल स्वयं करे।
2. नियंत्रित भोजन और पानी: निवासी तय समय पर बचा हुआ खाना और पानी दें। भरा पेट कुत्ता शांत रहता है, आक्रामक नहीं।
3. बाँझीकरण और टीकाकरण: नगर निगम और NGOs के सहयोग से नियमित नसबंदी और टीकाकरण सुनिश्चित करें। एक रिपोर्ट के अनुसार, 70% मादा कुत्तों की नसबंदी प्रजनन चक्र तोड़ सकती है।
4. पहचान: प्रत्येक कुत्ते को कॉलर और नाम दें। कर्नल बिंद्रा की “काळू” की कहानी इसका उदाहरण है, एक आक्रामक कुत्ता नाम और देखभाल से वफादार साथी बन गया।
5. चिकित्सा सुविधा: घायल या बीमार कुत्तों के लिए तुरंत इलाज की व्यवस्था।
यह मॉडल क्यों कारगर है?
प्राकृतिक सफाईकर्मी: कुत्ते सड़े-गले कचरे और चूहों को नियंत्रित करते हैं। नियंत्रित भोजन से उनकी आक्रामकता कम होती है।
रेबीज पर नियंत्रण: टीकाकरण से रेबीज और अन्य ज़ूनोटिक बीमारियां रुकेंगी।
कम लागत: शेल्टरों की तुलना में यह मॉडल सस्ता और टिकाऊ है।
सामुदायिक विश्वास: नाम और कॉलर से कुत्ते “अपने” लगते हैं, जिससे डर कम होता है। कर्नल बिंद्रा का अनुमान है कि इस मॉडल से 5 साल में काटने की घटनाएं 80-90% तक कम हो सकती हैं।
सार्वजनिक स्वास्थ्य और सामाजिक प्रभाव
रेबीज एक गंभीर सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल है। WHO के अनुसार, भारत में रेबीज से होने वाली मौतों का एक-तिहाई हिस्सा बच्चों का है। उपेक्षित बाँझीकरण और टीकाकरण अभियान इस खतरे को बढ़ाते हैं। यह मॉडल न केवल कुत्तों का कल्याण करता है, बल्कि मानव जीवन भी बचाता है। साथ ही, बचे हुए भोजन का उपयोग और कचरा प्रबंधन से पर्यावरण को भी लाभ होगा।
एक शहर से शुरुआत: पायलट प्रोजेक्ट
कर्नल बिंद्रा का सुझाव है कि किसी एक शहर को पायलट प्रोजेक्ट बनाया जाए।
साझेदारी: नगर निगम, NGOs, और पशु चिकित्सक मिलकर काम करें।
प्रोत्साहन: RWA और स्वयंसेवकों को सम्मानित करें जो इस मॉडल को लागू करें।
जागरूकता: नागरिकों को बाँझीकरण, टीकाकरण, और सुरक्षित व्यवहार की शिक्षा दें।
उपेक्षा से जिम्मेदारी की ओर
कर्नल बिंद्रा की “काळू” की कहानी सिखाती है कि देखभाल और पहचान से सबसे आक्रामक कुत्ता भी दोस्त बन सकता है। भारत के पास दो विकल्प हैं: असफल नीतियों को दोहराना या एक मानवीय और टिकाऊ मॉडल अपनाना। पड़ोस मॉडल न केवल कुत्तों को समुदाय का हिस्सा बनाएगा, बल्कि रेबीज को रोकेगा, काटने की घटनाओं को कम करेगा, और इंसान-कुत्ते के रिश्ते को डर से दोस्ती में बदलेगा। TarangVoice.com के माध्यम से हम समाज से अपील करते हैं कि इस मॉडल को अपनाएं और एक सुरक्षित, करुणामय भारत का निर्माण करें।