भारत सरकार की महत्वाकांक्षी आयुष्मान भारत योजना ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाओं को सुलभ बनाने का एक बड़ा प्रयास है। लेकिन उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले के परशुरामपुर क्षेत्र में मजगवा माफी का आरोग्य मंदिर इसका अपवाद बन गया है। वर्षों से बंद पड़े इस केंद्र पर ताला लटका होने से मरीज इलाज के बिना लौटने को मजबूर हैं। परिसर में उगी झाड़ियां विभाग की उदासीनता की गवाही दे रही हैं। यह घटना न केवल स्थानीय लोगों की परेशानी को उजागर करती है, बल्कि पूरे स्वास्थ्य तंत्र की कमजोरियों पर सवाल खड़े करती है। आइए, इस समस्या को विस्तार से समझते हैं।
आरोग्य मंदिर: योजना का उद्देश्य और वास्तविकताआयुष्मान भारत योजना के तहत देशभर में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र स्थापित किए गए हैं, जिन्हें अब आयुष्मान आरोग्य मंदिर नाम दिया गया है। इन केंद्रों का मुख्य लक्ष्य ग्रामीण और दूरदराज इलाकों में मुफ्त स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान करना है। यहां सामान्य बीमारियों का इलाज, टीकाकरण, गर्भवती महिलाओं की देखभाल और जागरूकता कार्यक्रम चलाए जाते हैं। लेकिन बस्ती के मजगवा माफी में यह केंद्र वर्षों से बंद पड़ा है। स्थानीय संवाददाता की रिपोर्ट के अनुसार, केंद्र पर ताला लगा है और कोई स्वास्थ्यकर्मी नजर नहीं आता। ग्रामीणों ने कई शिकायतें कीं, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई।
ग्रामीणों की व्यथा: इलाज के लिए भटकाव
स्थानीय निवासियों का कहना है कि छोटी-मोटी बीमारियों के लिए उन्हें अब दूर-दराज के अस्पतालों का रुख करना पड़ता है। एक ग्रामीण ने बताया कि केंद्र बंद होने से बच्चों की टीकाकरण और महिलाओं की जांच प्रभावित हो रही है। परिसर में घास-झाड़ियां उग आई हैं, जो न केवल देखने में खराब लगता है, बल्कि मच्छरों और सांपों का खतरा भी बढ़ा रहा है। आयुष्मान कार्ड धारकों को योजना का लाभ मिलना चाहिए था, लेकिन बंद केंद्र के कारण वे वंचित रह गए हैं। यह स्थिति ग्रामीण स्वास्थ्य सेवाओं की बदहाली को दर्शाती है।
विभाग की लापरवाही: जिम्मेदारों पर सवाल
इस मामले में जिला कार्यक्रम प्रबंधक दुर्गेश मल्य ने बताया कि जिम्मेदार कर्मियों पर कार्रवाई शुरू हो गई है। संबंधित अधिकारियों को पत्र जारी कर वेतन रोकने का आदेश दिया गया है। लेकिन यह कार्रवाई कितनी प्रभावी होगी, यह समय बताएगा। कई राज्यों में ऐसी ही समस्याएं सामने आ रही हैं। उदाहरण के लिए, झारखंड के लातेहार जिले में आयुष्मान आरोग्य मंदिर का भवन बनने के बाद भी बंद पड़ा है, जहां ताला लटका रहता है। मध्य प्रदेश के सागर जिले के अमरमऊ में भी केंद्र सप्ताह में केवल दो-तीन दिन खुलता है, बाकी समय बंद रहता है। इन घटनाओं से साफ है कि केंद्रों का निर्माण तो हो जाता है, लेकिन संचालन और रखरखाव में कमी रह जाती है।
कर्मचारियों की अनुपस्थिति और संसाधनों की कमी
आरोग्य मंदिरों में स्वास्थ्यकर्मियों की कमी एक बड़ी समस्या है। कई जगहों पर चिकित्सा अधिकारी या नर्स नियमित रूप से उपस्थित नहीं होते। इसके अलावा, दवाइयों और उपकरणों की आपूर्ति अनियमित होती है। ग्रामीण क्षेत्रों में सड़कें खराब होने से भी कर्मचारी आने से कतराते हैं। लेकिन यह बहाना नहीं बन सकता। सरकार ने इन केंद्रों को ‘आरोग्यं परमं धनम्’ टैगलाइन के साथ लॉन्च किया था, जो स्वास्थ्य को सर्वोच्च धन बताता है। फिर भी, जमीनी स्तर पर उदासीनता क्यों?
आयुष्मान भारत योजना: उपलब्धियां और चुनौतियां
आयुष्मान भारत योजना की शुरुआत 2018 में हुई थी, जिसमें दो मुख्य घटक हैं। पहला, स्वास्थ्य एवं कल्याण केंद्र (जिन्हें अब आरोग्य मंदिर कहा जाता है), जो प्राथमिक देखभाल पर फोकस करते हैं। दूसरा, प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना, जो गरीब परिवारों को मुफ्त द्वितीयक और तृतीयक इलाज प्रदान करती है। योजना ने लाखों लोगों को लाभ पहुंचाया है, लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में कार्यान्वयन की कमियां साफ दिखती हैं। केंद्र सरकार ने हाल ही में इन केंद्रों का नाम बदलकर आयुष्मान आरोग्य मंदिर किया है, ताकि पारंपरिक भारतीय संदर्भ जोड़ा जाए। राज्यों को पोर्टल पर नई तस्वीरें अपलोड करने का निर्देश भी दिया गया है। लेकिन नाम बदलने से ज्यादा जरूरी है वास्तविक सुधार।
ग्रामीण स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार के उपाय
इस समस्या से निपटने के लिए कुछ ठोस कदम उठाए जा सकते हैं:
नियमित निरीक्षण: जिला स्तर पर नियमित जांच टीम भेजी जाए, जो केंद्रों की स्थिति का मूल्यांकन करे।
कर्मचारियों की जवाबदेही: उपस्थिति के लिए बायोमेट्रिक सिस्टम लागू हो और अनुपस्थिति पर सख्त कार्रवाई हो।
संसाधनों की उपलब्धता: दवाइयों और उपकरणों की नियमित आपूर्ति सुनिश्चित की जाए।
जागरूकता अभियान: ग्रामीणों को योजना के लाभों के बारे में जागरूक किया जाए, ताकि वे शिकायत दर्ज करा सकें।
डिजिटल मॉनिटरिंग: एक ऐप या पोर्टल के माध्यम से केंद्रों की रीयल-टाइम स्थिति ट्रैक की जाए।
ये उपाय न केवल बस्ती जैसे क्षेत्रों में मदद करेंगे, बल्कि पूरे देश में योजना को मजबूत बनाएंगे।
सामाजिक प्रभाव: स्वास्थ्य असमानता का बढ़ता खतरा
बंद आरोग्य मंदिर ग्रामीणों के लिए केवल असुविधा नहीं, बल्कि एक बड़ा स्वास्थ्य जोखिम है। छोटी बीमारियां बड़ी बन जाती हैं, जिससे अस्पतालों पर बोझ बढ़ता है। गरीब परिवार, जो पहले से ही आर्थिक तंगी से जूझ रहे हैं, अब इलाज के लिए हजारों रुपये खर्च करने को मजबूर हैं। महिलाओं और बच्चों पर इसका असर सबसे ज्यादा पड़ता है। यदि ऐसे केंद्र सक्रिय हों, तो न केवल बीमारियां रुकेंगी, बल्कि समुदाय स्तर पर स्वास्थ्य जागरूकता भी फैलेगी। यह योजना का मूल उद्देश्य है, जो अब अधर में लटका हुआ है।
प्रशासन की भूमिका: कार्रवाई से आगे सोचें
डीसीपीएम दुर्गेश मल्य का कदम सराहनीय है, लेकिन यह अस्थायी समाधान है। प्रशासन को लंबे समय के लिए योजना बनानी होगी। स्थानीय पंचायतों को भी इसमें शामिल किया जाए, ताकि वे केंद्रों की निगरानी करें। ग्रामीणों की भागीदारी से समस्या का समाधान आसान होगा।
स्वास्थ्य सेवाओं को जीवंत बनाएं मजगवा माफी का आरोग्य मंदिर एक उदाहरण मात्र है कि कैसे सरकारी योजनाएं कागजों पर तो चमकती हैं, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और है। ग्रामीणों की शिकायतों के बाद कार्रवाई हुई है, लेकिन उम्मीद है कि यह केंद्र जल्द ही खुल जाएगा। आयुष्मान भारत योजना जैसे प्रयास देश को स्वस्थ बनाने के लिए हैं, लेकिन इसके लिए विभागीय उदासीनता त्यागनी होगी। आइए, हम सब मिलकर स्वास्थ्य सेवाओं को मजबूत बनाएं, ताकि कोई मरीज इलाज के बिना न लौटे।