लोकगायिका से नेता बनने की शुरुआत
मैथिली ठाकुर, जो अब तक अपनी मधुर लोकगायिकी और भक्ति गीतों के लिए जानी जाती थीं, अब बिहार की राजनीति में कदम रख चुकी हैं। उन्होंने भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) का दामन थामा है और अब दरभंगा जिले की अलीनगर विधानसभा सीट से चुनाव लड़ रही हैं।
मैथिली ठाकुर सिर्फ एक कलाकार नहीं हैं, बल्कि वो युवा वर्ग के लिए प्रेरणा भी हैं। उनकी आवाज़ में बिहार और विशेष रूप से मिथिला क्षेत्र की संस्कृति की झलक मिलती है। वे अब जनसेवा के क्षेत्र में भी योगदान देना चाहती हैं, और यही कारण है कि उन्होंने राजनीति में आने का फैसला किया।
बीजेपी ने क्यों दिया मौका?
बीजेपी को अलीनगर सीट के लिए एक ऐसे चेहरे की तलाश थी जिसकी छवि साफ-सुथरी हो और जनता से जुड़ाव भी हो। पिछले विधायक पर विवादों के चलते पार्टी एक नया विकल्प चाहती थी। मैथिली ठाकुर की लोकप्रियता, सादगी और ईमानदारी को देखते हुए उन्हें टिकट दिया गया।
उनकी छवि एक सांस्कृतिक और पारिवारिक मूल्य रखने वाली युवती की है, जो लोगों को अपनी बातों और गीतों से जोड़ लेती हैं। यही वजह है कि पार्टी को भरोसा है कि मैथिली युवा और महिला वोटरों को आकर्षित कर पाएंगी।
मैथिली की पृष्ठभूमि
मैथिली ठाकुर का जन्म बिहार के मधुबनी जिले में हुआ था। उनके पिता और दादा संगीत से जुड़े हुए थे और उन्होंने बचपन से ही संगीत की शिक्षा ली। बाद में उनका परिवार दिल्ली शिफ्ट हो गया, जहां मैथिली ने पढ़ाई और संगीत दोनों को आगे बढ़ाया।
मैथिली को देशभर में तब पहचान मिली जब उन्होंने कई भक्ति और लोकगीतों को सोशल मीडिया के ज़रिए लोगों तक पहुंचाया। उनके साथ उनके भाई भी रहते हैं, जो संगीत में उनका साथ देते हैं।
क्या चुनाव जीतना आसान होगा?
मैथिली के सामने कई चुनौतियाँ भी हैं। पहला – उन्हें राजनीति का ज्यादा अनुभव नहीं है। दूसरा – अलीनगर सीट पर स्थानीय नेता और कार्यकर्ता उन्हें बाहरी उम्मीदवार मान सकते हैं। तीसरा – विरोधी दल यह सवाल उठा सकते हैं कि एक गायिका भला जनता की समस्याओं को कैसे समझेगी?
हालांकि, अगर मैथिली जनसंपर्क बढ़ाएंगी और लोगों से सीधे जुड़ेंगी, तो यह उनके पक्ष में जा सकता है। उनकी सादगी, भाषण की शैली और सांस्कृतिक जुड़ाव उन्हें भीड़ से अलग बनाते हैं।
मैथिली ठाकुर की राजनीति में एंट्री सिर्फ एक व्यक्तिगत निर्णय नहीं है, बल्कि यह इस बात का संकेत है कि अब राजनीति में युवा और सशक्त महिलाओं की जरूरत है। यह देखना दिलचस्प होगा कि एक लोकगायिका के रूप में पहचानी जाने वाली मैथिली, जननेता बनने की राह में कितनी दूर तक जाती हैं।