भारत एक विविधतापूर्ण देश है, जहाँ विभिन्न जातियों और जनजातियों का समृद्ध सांस्कृतिक ताना-बाना मौजूद है। लेकिन ऐतिहासिक रूप से अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) समुदायों को सामाजिक भेदभाव, शोषण, और अत्याचार का सामना करना पड़ा है। इन अन्यायों को रोकने और इन समुदायों को सामाजिक न्याय दिलाने के लिए भारत सरकार ने अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 लागू किया। यह कानून दलितों और आदिवासियों के सम्मान और अधिकारों की रक्षा के लिए बनाया गया था। हालांकि, हाल के वर्षों में इस कानून के दुरुपयोग की घटनाएँ सामने आई हैं, जो न केवल न्याय व्यवस्था बल्कि सामाजिक संतुलन के लिए भी चिंता का विषय बन चुकी हैं। इस लेख में हम इस अधिनियम के उद्देश्य, दुरुपयोग की घटनाओं, न्यायिक हस्तक्षेप, और समाधान के उपायों पर विस्तार से चर्चा करेंगे।
SC/ST अत्याचार निवारण अधिनियम का उद्देश्य
SC/ST (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 का मुख्य उद्देश्य अनुसूचित जातियों और जनजातियों के खिलाफ होने वाले अत्याचारों को रोकना और उन्हें समाज में बराबरी का स्थान दिलाना है। इस कानून के प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित हैं:
अत्याचारों पर रोक: शारीरिक हिंसा, अपमान, सामाजिक बहिष्कार, और संपत्ति के नुकसान जैसे कृत्यों को रोकना।
त्वरित न्याय: पीड़ितों को तुरंत राहत और मुआवजा प्रदान करने के लिए पुलिस और विशेष अदालतों को शक्तियाँ देना।
सामाजिक समानता: दलित और आदिवासी समुदायों के आत्मसम्मान और अधिकारों की रक्षा करना।
इस अधिनियम के तहत विशेष प्रावधान किए गए हैं, जैसे बिना जमानत के गिरफ्तारी और विशेष अदालतों में सुनवाई, ताकि पीड़ितों को त्वरित और प्रभावी न्याय मिल सके।
कानून के दुरुपयोग की घटनाएँ
हालांकि SC/ST एक्ट ने कई पीड़ितों को न्याय दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, लेकिन इसके दुरुपयोग की घटनाएँ भी सामने आई हैं। कुछ प्रमुख उदाहरण निम्नलिखित हैं:
व्यक्तिगत दुश्मनी: कई बार पारिवारिक विवाद या आपसी रंजिश के चलते लोग बदले की नीयत से झूठे आरोप लगा देते हैं। उदाहरणस्वरूप, पड़ोसियों के बीच मामूली कहासुनी को जातीय उत्पीड़न का मामला बताकर शिकायत दर्ज करा दी जाती है।
जमीन और व्यापारिक विवाद: उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में, जहाँ भूमि और व्यापारिक विवाद आम हैं, इस कानून का उपयोग दबाव बनाने या प्रतिद्वंद्वी को परेशान करने के लिए किया जाता है।
राजनीतिक दुरुपयोग: जातिगत राजनीति के कारण इस कानून का गलत इस्तेमाल राजनीतिक लाभ लेने के लिए होता है।
ऐसी घटनाओं में निर्दोष व्यक्तियों को कानूनी उत्पीड़न, सामाजिक अपमान, और आर्थिक नुकसान का सामना करना पड़ता है। इससे न केवल कानून की विश्वसनीयता पर सवाल उठते हैं, बल्कि वास्तविक पीड़ितों की शिकायतें भी कम गंभीरता से ली जाती हैं।
महत्वपूर्ण न्यायिक हस्तक्षेप
SC/ST एक्ट के दुरुपयोग के संबंध में भारत की न्यायपालिका ने समय-समय पर महत्वपूर्ण टिप्पणियाँ और दिशानिर्देश दिए हैं। इस विषय पर सबसे प्रमुख निर्णय सुभाष काशीनाथ महाजन बनाम भारत सरकार (2018) का है, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि इस कानून का दुरुपयोग रोका जाना चाहिए और बिना प्रारंभिक जांच के तुरंत गिरफ्तारी नहीं होनी चाहिए। अदालत ने यह भी निर्देश दिया था कि सरकारी कर्मचारियों की गिरफ्तारी से पहले सक्षम अधिकारी की अनुमति आवश्यक होगी। जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने निम्नलिखित दिशा-निर्देश दिए:
प्रारंभिक जांच: बिना प्रारंभिक जांच के गिरफ्तारी न की जाए, ताकि झूठे मामलों को रोका जा सके।
सरकारी कर्मचारियों की सुरक्षा: सरकारी अधिकारियों की गिरफ्तारी से पहले उनके वरिष्ठ अधिकारी की अनुमति अनिवार्य हो।
अग्रिम जमानत: कुछ मामलों में अग्रिम जमानत का प्रावधान लागू हो।
इस फैसले का देशभर में भारी विरोध हुआ, क्योंकि कई समुदायों ने इसे SC/ST एक्ट को कमजोर करने वाला कदम माना। विरोध के बाद, केंद्र सरकार ने 2018 में ही इस कानून में संशोधन कर सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देशों को रद्द कर दिया। संशोधन के बाद, बिना प्रारंभिक जांच के गिरफ्तारी और गैर-जमानती प्रावधान फिर से लागू कर दिए गए। जिसका उद्देश्य पीड़ितों को न्याय दिलाना था, लेकिन कानून के दुरुपयोग की संभावना को रोकने के लिए अभी तक कोई सख्त कदम नहीं उठाए गए।
दुरुपयोग के दुष्परिणाम
SC/ST एक्ट के दुरुपयोग के कई गंभीर मामले भी आए :
न्याय व्यवस्था पर अविश्वास: झूठे मुकदमों के कारण लोग कानूनी प्रणाली पर भरोसा खो रहे हैं।
वास्तविक पीड़ितों की अनदेखी: दुरुपयोग की वजह से वास्तविक पीड़ितों की शिकायतें कम गंभीरता से ली जाती हैं।
जातिगत तनाव: झूठे आरोपों से समाज में जातियों के बीच वैमनस्य और तनाव बढ़ता है।
कानूनी संसाधनों की बर्बादी: झूठे मामलों की जांच और सुनवाई में समय और संसाधनों का अपव्यय होता है।
उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में, जहाँ जातीय संवेदनशीलता अधिक है, यह दुरुपयोग सामाजिक समरसता को और कमजोर करता है। उदाहरण के लिए, हाथरस (2020) जैसे मामलों में जहाँ वास्तविक अत्याचार सामने आए, वहीं कुछ मामलों में इस कानून का गलत उपयोग भी देखा गया।
समाधान और सुझाव
SC/ST एक्ट के मूल उद्देश्य और दुरुपयोग को रोकने के कई उपाय किए जा सकते हैः
1. निष्पक्ष और पारदर्शी जांच: हर मामले में प्रारंभिक जांच अनिवार्य हो, ताकि झूठे आरोपों को शुरुआत में ही रोका जा सके। जांच प्रक्रिया को समयबद्ध और पारदर्शी बनाया जाए।
2. झूठे मुकदमों पर सजा: झूठे मामले दर्ज करने वालों के खिलाफ कठोर कार्रवाई हो, जैसे जुर्माना या कानूनी दंड, ताकि दुरुपयोग पर अंकुश लगे।
3. पुलिस और न्यायपालिका की संवेदनशीलता: पुलिस और न्यायिक अधिकारियों को संवेदनशीलता और निष्पक्षता के साथ काम करने के लिए प्रशिक्षण दिया जाए।
4. जागरूकता अभियान: समाज में SC/ST एक्ट के उद्देश्य और इसके सही उपयोग के बारे में जागरूकता फैलाई जाए। साथ ही, सामाजिक सद्भाव को बढ़ावा देने के लिए समुदायों के बीच संवाद कार्यक्रम आयोजित किए जाएँ।
5.फास्ट ट्रैक अदालतें: SC/ST मामलों की सुनवाई हेतु विशेष त्वरित न्यायालय बनाए जाएं, जिससे सच्चे पीड़ितों को जल्द न्याय मिले और फर्जी केस शीघ्र निपटाए जा सकें।
6.गवाह सुरक्षा: गवाहों को धमकियों से बचाने के लिए प्रभावी गवाह सुरक्षा योजनाएँ लागू की जाएँ।
अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989* एक शक्तिशाली कानून है, जिसने दलित और आदिवासी समुदायों को सामाजिक न्याय और सम्मान दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। लेकिन इसके दुरुपयोग की बढ़ती घटनाएँ इसकी विश्वसनीयता और प्रभावशीलता को कमजोर कर रही हैं। इस कानून का उद्देश्य समाज में समानता और सद्भाव स्थापित करना है, न कि जातिगत तनाव को बढ़ाना। इसलिए, निष्पक्ष जांच, कठोर दंड, और सामाजिक जागरूकता के माध्यम से इसके दुरुपयोग को रोका जाना चाहिए। केवल तभी यह कानून अपने मूल उद्देश्य न्याय, समानता, और सामाजिक समरसता को प्राप्त कर सकेगा।
लेखक
लेखक अखंड पांडेय लखनऊ हाईकोर्ट के एक अधिवक्ता है जो सामाजिक विश्लेषक हैं, जो सामाजिक न्याय और कानूनी सुधारों पर लेख लिखती हैं। इन्हें उत्तर प्रदेश के सामाजिक मुद्दों पर शोध करने और समाधान सुझाने में विशेष रुचि है।