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 ऑपरेशन परिवर्तन: पीलीभीत के किसानों की क्रांतिकारी पहल

भारत, जो एक कृषि प्रधान देश है, आज पर्यावरण प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन जैसी गंभीर चुनौतियों का सामना कर रहा है। इनमें से एक प्रमुख समस्या है पराली जलाना, जो विशेष रूप से उत्तर भारत में वायु प्रदूषण को खतरनाक स्तर तक ले जाता है। हर साल सर्दियों के मौसम में पराली जलाने से उत्पन्न होने वाला धुआं न केवल ग्रामीण क्षेत्रों, बल्कि शहरी क्षेत्रों जैसे दिल्ली, लखनऊ और अन्य शहरों की वायु गुणवत्ता को भी प्रभावित करता है। इस समस्या से निपटने के लिए उत्तर प्रदेश के पीलीभीत जिले में ऑपरेशन परिवर्तन नामक एक अनूठी और प्रेरणादायक पहल शुरू की गई है। कर्नल पी.एस. बिंद्रा और विराज बाला के नेतृत्व में यह अभियान पराली जलाने की पुरानी प्रथा को समाप्त कर, इसे एक आर्थिक अवसर में बदल रहा है। यह पहल न केवल किसानों को वित्तीय लाभ पहुंचा रही है, बल्कि पर्यावरण संरक्षण और टिकाऊ कृषि को बढ़ावा देने में भी महत्वपूर्ण योगदान दे रही है। 

मुहिम के क्या है उद्देश्य 

ऑपरेशन परिवर्तन का लक्ष्य बहुआयामी है, जो पर्यावरण, अर्थव्यवस्था और सामाजिक जागरूकता को एक साथ जोड़ता है। इसके प्रमुख उद्देश्य हैं: 

1. वायु प्रदूषण में कमी: पराली जलाने से उत्पन्न होने वाली हानिकारक गैसों जैसे कार्बन डाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड और अन्य विषैले तत्वों को कम करना। 

2. किसानों की आय में वृद्धि: पराली को जलाने के बजाय इसे उद्योगों तक पहुंचाकर किसानों के लिए अतिरिक्त आय का स्रोत बनाना। 

3. पर्यावरण संरक्षण: स्वच्छ और टिकाऊ कृषि पद्धतियों को अपनाकर क्षेत्र की वायु गुणवत्ता में सुधार करना। 

4. सामाजिक जागरूकता: किसानों और स्थानीय समुदायों में पर्यावरण के प्रति जागरूकता बढ़ाना और टिकाऊ खेती को प्रोत्साहित करना। 

कार्यप्रणाली 

ऑपरेशन परिवर्तन ने पराली प्रबंधन के लिए एक व्यवस्थित और तकनीकी दृष्टिकोण अपनाया है। इसकी कार्यप्रणाली निम्नलिखित चरणों में कार्य करती है: 

पराली की प्रक्रिया: 

  धान की कटाई के बाद खेतों में बची पराली को परंपरागत रूप से जलाया जाता था, जिससे पर्यावरण को भारी नुकसान होता था। इस पहल के तहत, पराली को मशीनों और डीलरों से इसे बड़े-बड़े रोल में बदला जाता है। इस रोल से परिवहन के लिए भी सुविधाजनक हैं। 

संग्रहण और परिवहन: 

  एकत्रित पराली रोल्स को ट्रैक्टरों के माध्यम से नजदीकी संग्रहण केंद्रों तक पहुंचाया जाता है। इसके बाद, इन्हें ट्रकों के जरिए विभिन्न उद्योगों, जैसे प्लाईवुड इंडस्ट्री, ऊर्जा उत्पादन इकाइयों और बायो-फ्यूल आधारित उद्योगों में भेजा जाता है। यह प्रक्रिया सुनिश्चित करती है कि पराली का उपयोग उत्पादक तरीके से हो और यह पर्यावरण को नुकसान न पहुंचाए। 

तकनीकी सहायता: 

  इस पहल में किसानों को पराली रोल बनाने की प्रक्रिया और मशीनों के उपयोग के लिए प्रशिक्षण भी प्रदान किया जाता है। इससे न केवल कार्यकुशलता बढ़ती है, बल्कि किसानों को नई तकनीकों से परिचित होने का अवसर भी मिलता है। 

इस ऑपरेशन से क्या लाभ मिलेगा 

ऑपरेशन परिवर्तन ने किसानों, उद्योगों और पर्यावरण के लिए कई लाभ प्रदान किए हैं: 

1. किसानों को आर्थिक लाभ: 

   – पराली हटने से खेत आसानी से साफ हो जाता है, जिससे केवल एक जुताई के बाद सुपर सीडर ड्रिल से गेहूं की बुवाई संभव हो पाती है। पहले, पराली वाले खेतों में चार जुताइयों की आवश्यकता होती थी, जिससे समय और लागत दोनों बढ़ते थे। 

   – किसानों को पराली 245 रुपये प्रति क्विंटल की दर से बेचने का अवसर मिलता है, जिससे उनकी आय में वृद्धि होती है। 

2. उद्योगों के लिए किफायती कच्चा माल: 

   – उद्योगों को पराली के रूप में सस्ता और स्थिर कच्चा माल उपलब्ध हो रहा है। यह विशेष रूप से प्लाईवुड, ऊर्जा उत्पादन और बायो-फ्यूल उद्योगों के लिए लाभकारी है। 

3. पर्यावरण संरक्षण: 

   – पराली जलाने से उत्पन्न होने वाली हानिकारक गैसों में कमी आई है, जिससे क्षेत्र का वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) बेहतर हुआ है। 

   – यह पहल ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करने में भी योगदान दे रही है, जो जलवायु परिवर्तन के खिलाफ लड़ाई में महत्वपूर्ण है। 

4. सामाजिक और पर्यावरणीय जागरूकता: 

   – इस पहल ने किसानों और स्थानीय समुदायों में पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूकता बढ़ाई है। लोग अब टिकाऊ कृषि पद्धतियों को अपनाने के लिए प्रेरित हो रहे हैं। 

ऑपरेशन परिवर्तन के प्रारंभिक परिणाम

ऑपरेशन परिवर्तन ने अपने पहले सीजन में ही उल्लेखनीय परिणाम हासिल किए हैं: 

– पराली संग्रहण: इस सीजन में पीलीभीत के अधिकांश किसानों ने इस पहल में भाग लिया, जिसके परिणामस्वरूप लगभग 10,000 पराली रोल्स (5,000 से 7,000 टन) एकत्र किए गए। 

– आर्थिक बचत: प्रत्येक किसान ने औसतन तीन जुताइयों का खर्च बचाया, जिससे उनकी लागत में कमी आई और आय में वृद्धि हुई। 

– पराली जलाने में कमी: इस अभियान के कारण पराली जलाने की घटनाओं में 80% की कमी देखी गई है, और आयोजकों ने भविष्य में इसे 100% तक समाप्त करने का लक्ष्य रखा है। 

– वायु गुणवत्ता में सुधार: पराली जलाने की कमी से क्षेत्र की वायु गुणवत्ता में सुधार देखा गया है, जिसका लाभ न केवल स्थानीय लोगों को, बल्कि आसपास के क्षेत्रों को भी मिल रहा है। 

भविष्य की योजनाएँ 

ऑपरेशन परिवर्तन का दृष्टिकोण केवल पीलीभीत तक सीमित नहीं है। इस पहल को और अधिक प्रभावी और व्यापक बनाने के लिए निम्नलिखित योजनाएँ बनाई गई हैं: 

1. पराली प्रबंधन केंद्रों की स्थापना: 

   प्रत्येक ब्लॉक स्तर पर पराली संग्रहण केंद्र स्थापित किए जाएंगे, ताकि किसानों को पराली पहुंचाने में सुविधा हो। 

2. तकनीकी सहायता और प्रशिक्षण: 

   किसानों को आधुनिक मशीनों के उपयोग और रोल बनाने की प्रक्रिया में प्रशिक्षित किया जाएगा। इससे उनकी कार्यक्षमता बढ़ेगी और प्रक्रिया और अधिक सुचारू होगी। 

3. विस्तार योजना: 

   इस मॉडल को उत्तर प्रदेश के अन्य जिलों और पूरे देश में लागू करने की योजना है। इसके लिए स्थानीय प्रशासन और अन्य हितधारकों के साथ सहयोग किया जाएगा। 

4. सरकारी समर्थन: 

   राज्य और केंद्र सरकार से सब्सिडी और प्रोत्साहन योजनाओं को लागू करने की दिशा में काम किया जाएगा। इससे अधिक से अधिक किसान इस पहल से जुड़ सकेंगे। 

5. नवाचार और अनुसंधान: 

   पराली के अन्य उपयोग, जैसे बायो-कम्पोस्ट, बायोचार और अन्य पर्यावरण-अनुकूल उत्पादों के लिए अनुसंधान को बढ़ावा देना। 

चुनौतियाँ और समाधान 

हालांकि ऑपरेशन परिवर्तन ने प्रभावशाली परिणाम दिए हैं, फिर भी कुछ चुनौतियाँ हैं: 

– जागरूकता की कमी: कुछ किसानों को अभी भी इस पहल के लाभों के बारे में पूरी जानकारी नहीं है। इसके लिए व्यापक जागरूकता अभियान चलाए जा रहे हैं। 

– प्रारंभिक लागत: मशीनों और रोल बनाने की प्रक्रिया में प्रारंभिक निवेश की आवश्यकता होती है। इसके लिए सरकारी सब्सिडी और कम लागत वाली मशीनें उपलब्ध कराने की योजना है। 

– लॉजिस्टिक्स: पराली के परिवहन और संग्रहण में लॉजिस्टिक्स की चुनौतियाँ हैं। इसे दूर करने के लिए अधिक संग्रहण केंद्र और बेहतर परिवहन सुविधाएँ विकसित की जा रही हैं। 

ऑपरेशन परिवर्तन ने पराली प्रबंधन के क्षेत्र में एक नया और प्रेरणादायक मॉडल प्रस्तुत किया है। यह पहल न केवल किसानों को आर्थिक रूप से सशक्त बना रही है, बल्कि पर्यावरण संरक्षण और टिकाऊ विकास की दिशा में भी एक बड़ा कदम है। पीलीभीत की इस सफलता ने साबित कर दिया है कि सही दृष्टिकोण और सामूहिक प्रयासों से पर्यावरण और अर्थव्यवस्था के बीच संतुलन बनाया जा सकता है। यह समय है कि अन्य जिले और राज्य इस मॉडल से प्रेरणा लें और इसे अपनाकर अपने क्षेत्रों में पराली जलाने की समस्या को समाप्त करें। क्या भारत के अन्य क्षेत्र पीलीभीत की इस जीत से सीख लेकर एक स्वच्छ और समृद्ध भविष्य की ओर कदम नहीं उठाएंगे?

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