सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली-एनसीआर में आवारा कुत्तों को सड़कों से हटाकर शेल्टर में रखने का आदेश दिया है, जिसे जन्म फाउंडेशन की सह-ट्रस्टी स्मिता जोशी ने अव्यवहारिक और असरहीन करार दिया है। TarangVoice.com के माध्यम से स्मिता जोशी ने इस आदेश के खिलाफ तर्क प्रस्तुत किए हैं, जिसमें संसाधनों की कमी, वैक्यूम इफेक्ट, और ज़ूनोटिक बीमारियों के बढ़ने का खतरा शामिल है। यह लेख उनके विचारों और वैकल्पिक समाधानों को सामने लाता है।
जन्म फाउंडेशन का अनुभव और संसाधनों की चुनौती
स्मिता जोशी बताती हैं कि जन्म फाउंडेशन का शेल्टर 75-80 कुत्तों की देखभाल करता है, जिनमें छोड़े गए पालतू कुत्ते, क्रूरता या दुर्घटना के शिकार, और बुजुर्ग कुत्ते शामिल हैं। इस शेल्टर को चलाने में हर महीने ₹5 लाख, 2 एकड़ जमीन और 11 पूर्णकालिक कर्मचारी लगते हैं। यह कुत्तों को पोषण, उपचार और साफ-सफाई देता है, साथ ही रेबीज, लेप्टोस्पायरोसिस जैसी ज़ूनोटिक बीमारियों से बचाव करता है।
दिल्ली के अनुमानित 3 लाख आवारा कुत्तों के लिए संसाधनों की गणना करें:
लागत: ₹150 करोड़ प्रतिमाह
जमीन: 10,000 एकड़
कर्मचारी: 44,000
स्मिता जोशी कहती हैं, ये संसाधन मौजूद ही नहीं हैं। इसका मतलब है कि यह आदेश ‘प्रबंधन’ नहीं, बल्कि ‘हटाने’ और ‘मारने’ की नीति बन जाएगा। दिल्ली में वर्तमान में सिर्फ 20 पशु नियंत्रण केंद्र हैं, जो 5,000 कुत्तों की देखभाल भी सही तरह से नहीं कर पाते।
वैक्यूम इफेक्ट और ज़ूनोटिक बीमारियों का खतरा
सुप्रीम कोर्ट का फैसला ABC नियम 2023 से अलग है, जो नसबंदी और टीकाकरण के बाद कुत्तों को वहीं छोड़ने की बात करता है। स्मिता जोशी चेतावनी देती हैं कि सभी कुत्तों को हटाने से वैक्यूम इफेक्ट होगा, जिससे आसपास के क्षेत्रों से बिना नसबंदी और टीकाकरण वाले कुत्ते दिल्ली में प्रवेश करेंगे। PETA India और अन्य संगठनों ने भी इस खतरे की पुष्टि की है।
उदाहरण के लिए, यदि रोज़ 1,000 कुत्ते पकड़े जाएं, तो 3 लाख कुत्तों को पकड़ने में 300 दिन लगेंगे। इस दौरान हजारों पिल्ले पैदा होंगे, और बिना टीकाकरण के रेबीज और लेप्टोस्पायरोसिस जैसी ज़ूनोटिक बीमारियां बढ़ेंगी। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, भारत में रेबीज से 36% वैश्विक मौतें होती हैं, और टीकाकरण बंद होने से यह स्थिति और गंभीर हो सकती है।
ऐतिहासिक सबक: हटाने की नीति का असफल इतिहास
स्मिता जोशी 2003 से पहले की स्थिति का हवाला देती हैं, जब ABC नियम लागू नहीं थे। उस समय कुत्तों को जिंदा दफनाया गया, बिजली के झटकों से मारा गया, या जहर देकर मार डाला गया। यह क्रूरता न केवल नैतिक रूप से गलत थी, बल्कि अप्रभावी भी थी, क्योंकि कुत्तों की संख्या नियंत्रित नहीं हुई। चीन की गौरैया वाली गलती का उदाहरण है कि अचानक हटाने से प्राकृतिक संतुलन बिगड़ता है, जिससे चूहे और अन्य हानिकारक जीव बढ़ सकते हैं।