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छोटे स्कूलों के विलय पर हाईकोर्ट की मुहर, जनहित याचिका खारिज

 इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने उत्तर प्रदेश सरकार की प्राथमिक और उच्च प्राथमिक विद्यालयों के समेकन (मर्जर) की नीति को एक बार फिर संवैधानिक और जनहित में ठहराया है। लखनऊ हाई कोर्ट के अधिवक्ता और सामाजिक कार्यकर्ता अखंड कुमार पांडेय ने इस फैसले को शिक्षा सुधार और संसाधनों के प्रभावी उपयोग की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम बताया। इस निर्णय से योगी सरकार को अपनी शिक्षा नीति को लागू करने में बड़ी न्यायिक राहत मिली है। यह फैसला न केवल शिक्षा की गुणवत्ता को बढ़ाने की दिशा में एक कदम है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि संगठित संसाधन और प्रभावी नीतियाँ ही बच्चों को बेहतर भविष्य प्रदान कर सकती हैं।

हाईकोर्ट का फैसला: जनहित याचिका खारिज

गुरुवार को न्यायमूर्ति ए.आर. मसूदी और न्यायमूर्ति श्रीप्रकाश सिंह की खंडपीठ ने एक जनहित याचिका (PIL) को खारिज कर दिया, जिसमें 16 जून 2025 को जारी सरकारी आदेश को चुनौती दी गई थी। इस आदेश में कम छात्र संख्या वाले प्राथमिक और उच्च प्राथमिक विद्यालयों को नजदीकी स्कूलों में समायोजित करने का प्रावधान था। याचिका में यह भी मांग की गई थी कि दूरदराज क्षेत्रों में रहने वाले बच्चों के लिए परिवहन सुविधाएँ उपलब्ध कराई जाएँ।

राज्य सरकार ने कोर्ट में तर्क दिया कि इस मामले पर 7 जुलाई 2025 को न्यायमूर्ति पंकज भाटिया की एकल पीठ ने सीतापुर के 51 बच्चों द्वारा दायर याचिका पर विस्तृत फैसला सुनाया था। उस फैसले में स्कूलों के समेकन को संवैधानिक और बच्चों के हित में माना गया था। इस आधार पर खंडपीठ ने जनहित याचिका को सुनवाई योग्य न मानते हुए खारिज कर दिया।

अखंड कुमार पांडेय ने कहा, हाईकोर्ट का यह फैसला स्पष्ट करता है कि शिक्षा का अधिकार केवल स्कूल भवनों की उपलब्धता तक सीमित नहीं है। यह गुणवत्तापूर्ण शिक्षा, बेहतर संसाधनों, और प्रभावी शिक्षण व्यवस्था सुनिश्चित करने का दायित्व भी है। योगी सरकार का यह कदम बच्चों के भविष्य को सशक्त बनाने की दिशा में एक ऐतिहासिक निर्णय है।”

7 जुलाई का फैसला: शिक्षा सुधार की दिशा में मील का पत्थर

इससे पहले, 7 जुलाई 2025 को न्यायमूर्ति पंकज भाटिया की एकल पीठ ने स्कूल समेकन के खिलाफ दायर सभी याचिकाओं को खारिज करते हुए सरकार के निर्णय को सही ठहराया था। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यह नीति संविधान के अनुच्छेद 21A (मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार) का उल्लंघन नहीं करती, बल्कि इसका उद्देश्य बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और समान अवसर प्रदान करना है।

कोर्ट ने यह भी माना कि छोटे स्कूलों में संसाधन बिखरे हुए थे, जिसके कारण बच्चों को न तो पर्याप्त शिक्षक मिल पा रहे थे और न ही स्मार्ट क्लास, पुस्तकालय, खेल-कूद की सुविधाएँ, या डिजिटल संसाधन उपलब्ध हो पा रहे थे। सरकार ने तर्क दिया कि 50 से कम छात्रों वाले स्कूलों या छात्रविहीन स्कूलों को नजदीकी स्कूलों में समायोजित किया जा रहा है, ताकि शिक्षकों, संसाधनों, और अधोसंरचना का एकीकृत उपयोग हो सके।

न्यायमूर्ति पंकज भाटिया ने कहा, यह नीतिगत निर्णय बच्चों के दीर्घकालिक हित में है। यह संसाधनों के बेहतर उपयोग और शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार की दिशा में एक दूरदर्शी कदम है। जब तक कोई निर्णय असंवैधानिक या दुर्भावनापूर्ण न हो, कोर्ट इसमें हस्तक्षेप नहीं कर सकता।

योगी सरकार की स्कूल समेकन नीति: प्रमुख बिंदु

16 जून 2025 को उत्तर प्रदेश के बेसिक शिक्षा विभाग ने एक आदेश जारी किया, जिसमें कम छात्र संख्या वाले स्कूलों को नजदीकी उच्च प्राथमिक या कंपोजिट स्कूलों में समायोजित करने का निर्देश दिया गया। इस नीति के प्रमुख बिंदु इस प्रकार हैं:

– लक्ष्य: शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार, ड्रॉपआउट दर में कमी, और संसाधनों का समुचित उपयोग।

– प्रक्रिया: इन स्कूलों को नजदीकी स्कूलों के साथ जोड़ा जा रहा है, न कि बंद किया जा रहा है। यह सुनिश्चित किया गया है कि कोई भी प्राथमिक स्कूल पूरी तरह बंद नहीं होगा।

– लाभ: एकीकृत स्कूलों में बच्चों को बेहतर शिक्षक, स्मार्ट क्लास, पुस्तकालय, खेल-कूद की सुविधाएँ, और डिजिटल संसाधन उपलब्ध होंगे।

अखंड कुमार पांडेय ने इस नीति की सराहना करते हुए कहा, यह कदम राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के अनुरूप है, जो स्कूलों की पेयरिंग और संसाधनों के अनुकूल उपयोग पर जोर देती है। यह ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा को सुलभ और गुणवत्तापूर्ण बनाने की दिशा में एक क्रांतिकारी कदम है।

याचिकाकर्ताओं की दलीलें और सरकार का जवाब

याचिकाकर्ताओं की तरफ से गौरव मेहरोत्रा, डॉ. एल.पी. मिश्रा, और कई वकीलों ने अपना तर्क दिया कि विद्यालयों का समेकन मुफ्त और जरूरी शिक्षा का अधिकार अधिनियम (RTE Act) पर खरा नहीं बल्कि इसका उल्लंखन करता है।

अधिवक्ताओं की प्रमुख दलीलें थीं:

– लंबी दूरी की समस्या: छोटे बच्चों को दूर के स्कूलों तक जाने में कठिनाई होगी, जिससे उनकी शिक्षा में बाधा और ड्रॉपआउट की संभावना बढ़ेगी।

– शिक्षा के अधिकार का उल्लंखन: संविधान के अनुच्छेद 21A  जो 6 से 14 साल के बच्चों को उनके घर के समीप शिक्षा का अधिकार प्रदान करता है।

– स्कूलों की गुणवत्ता पर ध्यान की कमी: सरकार को कम नामांकन वाले स्कूलों की गुणवत्ता सुधारने पर ध्यान देना चाहिए, न कि उन्हें मर्ज करना चाहिए।

इसके जवाब में राज्य सरकार की ओर से अपर महाधिवक्ता अनुज कुदेसिया, मुख्य स्थायी अधिवक्ता शैलेंद्र कुमार सिंह, और वरिष्ठ अधिवक्ता संदीप दीक्षित ने निम्नलिखित तर्क दिए:

– संसाधनों का बेहतर उपयोग: कम छात्रों वाले स्कूलों में शिक्षक और संसाधन बिखरे हुए हैं, जिससे शिक्षा की गुणवत्ता प्रभावित होती है।

– छात्रविहीन स्कूल: प्रदेश में 18 स्कूल ऐसे हैं, जहाँ एक भी छात्र नहीं है। इन स्कूलों को चलाना अव्यवहारिक है।

– शिक्षा सुधार: समेकन से बच्चों को बेहतर सुविधाएँ, जैसे स्मार्ट क्लास, पुस्तकालय, और खेल के मैदान, उपलब्ध होंगे।

– RTE का अनुपालन: सरकार ने स्पष्ट किया कि समेकन से कोई भी बच्चा शिक्षा से वंचित नहीं होगा। बेसिक शिक्षा अधिकारी (BSA) को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया गया है कि सभी बच्चों को शिक्षा मिले।

कोर्ट ने सरकार के तर्कों को स्वीकार करते हुए कहा कि यह नीति राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के अनुरूप है और बच्चों के दीर्घकालिक हित में है।

सावन मास और शिक्षा सुधार: एक सांस्कृतिक-शैक्षिक संगम

यह फैसला सावन मास के पावन महीने में आया है, जो आध्यात्मिकता और सामाजिक कल्याण का प्रतीक है। सावन मास में भगवान शिव की भक्ति और गंगाजल से अभिषेक प्रकृति के प्रति सम्मान और सामाजिक एकता को दर्शाता है। इसी तरह, स्कूलों का समेकन बच्चों को बेहतर शिक्षा और संसाधन प्रदान करके सामाजिक और शैक्षिक समरसता को बढ़ावा देता है। अखंड कुमार पांडेय ने कहा, जैसे सावन में शिव भक्ति हमें आंतरिक शक्ति देती है, वैसे ही यह नीति बच्चों को शिक्षा के माध्यम से सशक्त बनाएगी। यह फैसला आध्यात्मिकता और प्रगति का एक सुंदर मेल है।

स्कूल समेकन के लाभ

योगी सरकार की इस नीति से निम्नलिखित लाभ होने की उम्मीद है:

गुणवत्तापूर्ण शिक्षा: एकीकृत स्कूलों में बच्चों को बेहतर शिक्षक, स्मार्ट क्लास, और डिजिटल सुविधाएँ मिलेंगी।

– ड्रॉपआउट में कमी: बेहतर सुविधाओं और संसाधनों से बच्चे स्कूल की ओर आकर्षित होंगे, जिससे ड्रॉपआउट दर कम होगी।

संसाधनों का प्रभावी उपयोग: शिक्षकों और अधोसंरचना का एकीकृत उपयोग शिक्षा व्यवस्था को सशक्त बनाएगा।

-ग्रामीण क्षेत्रों में प्रगति: ग्रामीण बच्चों को आधुनिक सुविधाएँ मिलेंगी, जिससे शहरी-ग्रामीण अंतर कम होगा।

चुनौतियाँ और समाधान

हालाँकि यह नीति शिक्षा सुधार की दिशा में एक बड़ा कदम है, कुछ चुनौतियाँ भी हैं:

– दूरदराज क्षेत्रों में परिवहन: ग्रामीण क्षेत्रों में बच्चों को स्कूल तक पहुँचने में कठिनाई हो सकती है।

– जागरूकता की कमी: अभिभावकों और समुदायों को इस नीति के लाभों के बारे में जागरूक करने की आवश्यकता है।

– शिक्षकों का प्रशिक्षण: एकीकृत स्कूलों में शिक्षकों को आधुनिक शिक्षण तकनीकों के लिए प्रशिक्षित करना होगा।

 चुनौतियों से निपटने के लिए कई प्रकार के उपाय किए जा सकते हैं:

– परिवहन सुविधाएँ: सरकार दूरदराज के बच्चों के लिए बस या अन्य परिवहन सुविधाएँ उपलब्ध कराए।

– जागरूकता अभियान: स्थानीय स्तर पर अभियान चलाकर अभिभावकों को नीति के लाभों के बारे में बताया जाए।

शिक्षक प्रशिक्षण: शिक्षकों के लिए डिजिटल और आधुनिक शिक्षण तकनीकों पर प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किए जाएँ।

इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ का यह फैसला उत्तर प्रदेश में शिक्षा सुधार की दिशा में एक मील का पत्थर है। योगी सरकार की स्कूल समेकन नीति को संवैधानिक और जनहित में ठहराकर कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि शिक्षा का अधिकार केवल स्कूलों की संख्या से नहीं, बल्कि गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और संसाधनों के प्रभावी उपयोग से सुनिश्चित होता है। अखंड कुमार पांडेय ने इस फैसले की सराहना करते हुए कहा, “यह निर्णय बच्चों के भविष्य को सशक्त बनाने और राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के लक्ष्यों को प्राप्त करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। सावन मास की आध्यात्मिकता और यह नीति दोनों ही समाज को सशक्त बनाने का संदेश देती हैं।

लेखक

अभिषेक तिवारी एक स्वतंत्र पत्रकार और सांस्कृतिक विश्लेषक हैं, जो भारतीय संस्कृति, शिक्षा, और सामाजिक मुद्दों पर लेख लिखते हैं। इन्हें सामाजिक समरसता और आत्मनिर्भर भारत को बढ़ावा देने में विशेष रुचि है।

Abhishek Tiwari
Abhishek Tiwari
धर्म और राष्ट्र की रक्षा को प्राथमिकता मानते हुए पत्रकारिता के क्षेत्र में समर्पित प्रशिक्षु। सैनिक व किसान परिवार से जुड़े। उद्देश्य सच्चाई को जन-जन तक पहुंचाना और राष्ट्र के हित में कार्य करना है। साहसी, निडर, और समर्पित व्यक्तित्व के साथ, समाज में सकारात्मक बदलाव लाने का प्रयास।

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  1. मुलताई में कुछ बैंक, कुछ शॉपिंग कॉम्प्लेक्स बिना पार्किंग के संचालित हो रहे हैं, तथा कुछ लोगों ने पार्किंग के लिए जगह बहुत कम दी है। जो वाहन पार्किंग के लिए पर्याप्त नहीं है। इससे ग्राहको को वाहन खड़े करने में बहुत परेशानी होती है। आखिर बिना पार्किंग के बैंक कैसे संचालित हो रहे हैं। ये तो नियमों का उल्लघंन हो रहा है। सड़क किनारे वाहन खड़े करने से यातायात व्यवस्था प्रभावित होती है। कई बार दुर्घटना तक हो जाती है। सरकारी जमीन पर वाहन खड़े हो रहे हैं ।जबकि जिस भवन मे बैंक संचालित होती है उसकी स्वयं की पार्किंग होना जरूरी है। मुलताई में संचालित सभी बैंकों की पार्किंग व्यवस्था की जांच होना चाहिए।
    कुछ बेसमेंट बिना अनुमति के बने हैं। कुछ व्यावसायिक भवनों के नक्शे बिना पार्किंग दिए पास हुए हैं। कुछ लोगों ने सरकारी जमीन पर पक्का अतिक्रमण कर लिया है। जांच होना चाहिए।
    रवि खवसे, मुलताई (मध्यप्रदेश)

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